Wednesday, October 14, 2009

कश्मकश..!!

जीवन को कई सवालों ने है घेरा,
हर सवाल लाता मन में एक नया सवेरा,
लेकिन एक प्रश्न में अभी तक क्यों मैं अटकता हूँ,
आख़िर.. मैं क्यों पढता हूँ?

हर युग की अपनी एक कही कहानी है,
योद्धाओं ने तब प्रण लिए थे, नेताओं ने आज ठानी है.
बूँद बूँद कथाओं से इतिहास बनता है,
लेकिन पढ़ाई से इसका क्या रिश्ता है?

थक गए हमारे हाथ निबंध लिखते लिखते,
ऊब गया है अब तो मन geometry करते करते.
distribution रटने से मुझे क्या मिलेगा?
क्या भूगोल और इतिहास ही मेरा भविष्य तय करेगा?

इन प्रश्नों का शायद एक ही है जवाब,
नहीं, पढने से बच्चा नहीं बनता नवाब.
लेकिन पढने से ही तो मुझमें अक्ल आई है,
जो आज मन की भावना स्याही से पन्ने पर उतर आई है.

परीक्षाएं देकर ही तो मैंने लड़ना सीखा,
क्या कोई और उपाय है इम्तिहान सरीखा,
जो सिखाता मुझे जीवन की सच्चाई क्या है,
आज यही सच्चाई इतिहास के रूप में मेरे दिल में बयां है.

लेकिन अब भी बच्चों के मन हैं उलझे हुए,
कौन समझाएगा उन्हें, देगा उन्हें जवाब सुलझे हुए?
शायद इश्वर भी यही चाहता है,
बच्चा बड़ा होने पर सब समझ जाता है,
जैसे आज मैं खुशी खुशी ये कविता लिखता हूँ,
मैं यह नहीं पूछता कि मैं क्यों पढता हूँ?